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________________ प्रस्तावना। पुष्पमालाप्रकरणम्। ॥ ५ ॥ CHECORMALAUNCCUSA अपूर्ण प्रतियां है, इससे इसके प्रचारका अनुमान लगाया जा सकता है। इस बालावबोधके रचयिता मेरुसुन्दर बहुत बडे भाषा टीकाकार थे। इनके अनेक जैन जैनेतर छन्द, अलंकार, काव्य, सिद्धान्त व धर्मग्रन्थोंके बालावबोध मिले हैं जिनमें कथाएंभी प्रचुर परिमाणमें दी गई है। उनमेंसे षष्टिशतक बालावबोध छपभी चुका है। पुष्पमाला प्रकरणमें हिंसा, अहिंसा, विविध प्रकारके दान, शील, तप, भाव, सम्यक्त्व, व्रत, समिति, गुप्ति, स्वाध्याय, विहार, कृत्य, अकृत्य, मोक्ष हेतु, उत्सर्ग-अपवाद, इन्द्रियजय, कषाय निग्रह, गुरु शिष्य स्वरूप, आलोचना या दोष निवारण वैराग्य, विनय, वैयावृत्य, आराधना, विराधना आदि विषयोंका दृष्टान्न कथाओं के साथ बड़ाही सुन्दर विवेचन मिलता है। अतः यह प्रन्थ हर व्यक्तिके लिए पठनीय और लाभप्रद है पर खेद है अभीतक ऐसे उपयोगी व महत्वपूर्ण प्रन्थका राष्ट्रभाषा-हिन्दी आदि में अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ। इससे जन साधारण इसके महत्वसे अपरिचित रहा और जो लाभ उसे मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। इसी प्रकारके अन्य ग्रन्थरत्नोंसे जैन साहित्य भण्डार भरा पड़ा है। पर वे अधिकांश प्रन्य अप्रकाशित हैं और जो थोडेसे प्रकाशित हुए हैं वे भी प्राकृत संस्कृत या पुरानी लोक भाषाओं में हुए हैं जिससे विद्वानों तकही उनकी जानकारी सीमित हैं। केवल साधु-साध्विके व्याख्यानमेंही कुछ ग्रन्थों का उपयोग यदा कदा होता है। वर्तमान युगमें नैतिक और धार्मिक प्रन्थों के स्वाध्यायकी रुचि निरन्तर घटती जा रही है। वर्तमान शिक्षामें तो उनका स्थान रहा ही नहीं और मुनि यति गणभी आगे जैसे स्वाध्यायशील नहीं रहे । यद्यपि पहले की अपेक्षा अब प्रन्थ बहुत सुलभ IASCISCESARICICIREC ३ ॥
SR No.600375
Book TitlePushpamala Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri, Buddhisagar
PublisherJindattasuri Bhandagar
Publication Year1961
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size27 MB
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