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प्रश्नव्याकरणसूत्र ए कुटग्रंथ लेखाय छे आना उपर अभयदेवसूरि महाराजनी टीका प्रथम छपाई छे आ ग्रंथ उपर नहि छपायेली पू. ज्ञानविमलसूरिनी बीजी टीका अमारी ग्रंथमाळा तरफथी छपाववामां आवी छे. आ टीका एटली बघी सरळ अने हृदयंगम छे के गमे तेवा नवीन अभ्यासीनो पण तेमां सहेजे प्रवेश यह शके छे. आ ग्रंथमां आवता एकेक विषयने एटली सरसरीते छप्यो छे के दरेक वांचकने ते संबंधी संतोष भाय. प्रस्तुत ग्रंथकारनुं जीवन ग्रंथनुं अवलोकन विगेरे संबंधी विस्तृत वर्णन जना बीजा भागमां अमे आपवाना होई अत्यारे ते संबंधी कांई उल्लेख करता नथी, आ ग्रंथना शरुआतना फर्मा सिवाय बाकीना फर्मा निर्णयसागरी टाइपमा छपाक्वामां आव्या के, अने हवे पछीनो बीजो भाग पण निर्णयसागरी टाइपसां छपाक्वानो शरु करी दीघेल छे आना संशोधन माटे त्रण प्रतिनो उपयोग करवामां आव्यो छे १ देवीशाना पाडाना विमळना उपाश्रयनी प्रत २ डहेलाना उपाश्रयनी प्रत ३ जैनानंद पुस्तकालयनी प्रत, छतां आ त्रणे प्रतोमांथी एक प्रत पूर्वे नहिं संशोधायेली होवाथी आने शुद्ध करवामां वधुज प्रयत्न करवामां आव्यो होवा छतां कांड पण स्खलना रही होय तो तेने वांचको सुधारी लेशे
प्रह्लादनपुर आपाड शुक्ल पूर्णिमा विक्रम संवत १९९३
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व्याख्यानवाचस्पति विद्वद्वर्य परमपूज्य श्रीमत्पंन्यास रंगविमलगणिवर विनेयाणु कनकविमलजी