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पर्युषणा
भाषान्तरम्
ष्टान्हिका व्याख्यान
॥५९॥
गयो, तथा श्री शांतिचंद्र उपाध्याय जी पण त्यां आव्या, अने बन्ने जणा अरसपरस वार्तालाप करवा लाग्या. तेवामां बादशाही नोबतना डंकानो गर्जारव सांभळ्यो. अकस्मात् नोवतनो गर्जारव श्रवण करी बादशाह चकीत थयो. पोताना सेवकोने कहेवा लाग्यो. अमारी आज्ञा विना नोवतनो गरिव बार गव्यूति-चोवीश गाउ मध्ये थतो नथी. अने आ शुं संभळाय छे ? माटे जलदीथी तपास करो. त्यारबाद सेवकोए तपास करी राजाने कह्यु-हे महाराज ! तमारा पिता हुमायु सैन्य सहित तमोने मळवा माटे आवे छे. आवी रोते कहेवानी साथे ज हुमायु आवी पोताना पुत्रने आलिंगन करी बेठो, अने अकबरना सैन्यना समग्र माणसोने मेवामीठाइथी भरेली रूपानी रकाबोओ आपी. तथा अकबर बादशाहने घj सन्मान आपी जेम आव्यो हतो तेम गयो अने क्षणमात्रमा अदृश्य थयो. त्यारबाद शांतिचंद्र उपाध्यायजीनी साथे पूर्वनी पेठे पोताना आत्माने वार्तालाप करतो बादशाहे दीठो. तेथी आश्चर्य सहित विचार करवा लाग्यो के-आ इंद्रजाळ नथी, कारण के-अमोने तथा अमारा माणसोने समर्पण करेली वस्तुओ प्रत्यक्ष देखाय छे, माटे आ चेष्टा गुरुमहाराजनीज करेली छे; तेथी अत्यंत रंजन थइ | बादशाहे गुरुमहाराजने नमस्कार करी स्तुति करी. हवे एकदा राजाए अटक देश जीतवाने माटे ३२) कोश प्रमाण प्रयाण कयु. ते अवसरे बादशाहे लश्करना माणसोनी हाजरी गणी ते मध्ये शांतिचंद्र उपाध्यायर्नु पण नाम श्रवण करवामां आव्यु, ते सांभळी बादशाहे विचार कर्यो के-अहो! वाहन अने उपानह रहित ए महाकष्टने पामेला इशे; तेथी पोताना सेवकोने कड्यु के-गुरुमहाराजने बोलावो. सेवकोए जइ गुरुमहाराजने कह्यु-हे स्वामिन् ! आपने बादशाह याद करे छे. आ समये मुनोंद्रनो अवस्था जूदा प्रकारनी थएली छे. पगने विषे सोजा चढी गया छ,