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________________ पर्युषणाष्टाहिका भावार्थ:-तीर्थनी उन्नति करवा निमित्ते साधुओ पण उद्यमने करे छे, ते कारण माटे हे स्वामिन् ! आप साहेबे पण अहीं तीर्थनी प्रभावना करवी जोइए; कारण के-पुष्पपूजा विना पर्युषण पर्व शोभाने पामी शकता नथी. भाषान्तरम् व्याख्यान ५० ए प्रकारे श्रावकोनां वचनोने श्रवण करी श्रीमान् वज्रस्वामीमहाराज आकाशगामिनी विद्यावडे करी माहेश्वरीनगरीने विषे पोताना पितानो मित्र ताडित नामनो माळी हतो, त्यां जइ तेमना पासेथी एकवीश कोटी पुष्प लइने पोते श्री हिमवंत पर्वतने विषे श्रीदेवी (लक्ष्मीदेवी) ने घरे गया. त्यां लक्ष्मीदेवीए आपेल एक महाकमळने तथा हुताशन वनथी वीश लाख फुलने लइने तिर्यग्ज़ंभक देवताए विकुर्वणा करेल विमानने विषे बेसी महोत्सव सहित आवीने जैनशासननी प्रभावना करी सर्व जैनमंदिरोने विषे महोत्सव कों. ते देखीने अनेक बौद्ध लोकोए मान मृकी श्रीमान् वज्रस्वामीमहाराजना चरणकमळने नमस्कार कर्यो, अने बौद्धराजा पण जैनधर्मने विषे भक्तिवाळो थयो. वळी पण का छे के पर्व महिमाने विषे प्राये करी धर्म रहितने पण धर्म करवानी बुद्धि थाय छ, निर्दय प्राणीओने पण दया पाळवानी बुद्धि थाय छे, अविरतिओने (व्रतप्रत्याख्यान रहित) ने पण व्रत पञ्चक्खाण करवानी मति थाय छे, कृपण प्राणीओने पण सन्मार्गने विषे लक्ष्मीनो व्यय करवानी इच्छा थाय छे, तथा कुशील प्राणीओने पण शियळ पाळवानी विचारणा थाय छे, तथा तप रहित जीवोने पण तपस्या करवानी भावना थाय छे, माटे शास्त्रकार महाराजाए शास्त्रने विषे कहेलुं छे के ॥५०॥
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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