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________________ पर्युषणा-I भाषान्तरम् व्याख्यान ॥३६॥ देवना चरणकमळने नमस्कार करी चत्यथकी बहार नीकळी, बहारना प्रदेशमार्गने विषे बन्नेना कुळादिक जाणवा माटे मंत्रीने आदेश कर्यो. मंत्री पण ते बन्नेना समीपे जइ अमृत समान मधुर वाणीवडे करी संभाषण करी पूछवा | लाग्यो के-हे कन्याओ! तमे कोण छो? तमारो स्वामी कोण छे ? तमारु आवागमन अहीं शा कारणथी थयुं छे। | ते सर्व मने कहो. ए प्रमाणे मंत्रीना वाक्यने श्रवण करी ते बन्नेमांथी एक बोलवा लागी. अमे बन्ने मणिचूड नामना विद्याधरराजानी पुत्रोओ छोए. बाळकाळथो ज कळाने विषे आदरवाळी छोए. अनुक्रमे अमो बन्नेने यौवन अवस्थाने पामेल देखी अमारो पिता वरनी चिंता करवा लाग्यो, परंतु अमो बन्ने अमारा लायक वर नहि प्राप्त थवाथी दरेक जूदा जूदा स्थळे श्री जिनेश्वरमहाराजने नमस्कार करी अमारो जन्म सफळ करीए छीए; कारण के फरीथी मानवभत्र क्यां प्राप्त थवानो हतो? वळी आ अयोध्यानगरी पण तीर्थभूत छे. ते कारण माटे अहीं भरतमहाराजे करावेल चैत्यने विषे श्रीमान् आदि जिनेश्वरने नमस्कार करवाने माटे अमाझं आवागमन थएलुं छे. एवी रोते बोली रहेवाथी मंत्रीए कह्यु के-आ सूर्ययशाराजानी साथे तमारो संगम श्रेष्ठ छे; कारण के ते राजा श्रीमान् ऋषभदेवस्वामीनो पौत्र अने भरतचक्रवर्तीनो पुत्र छे. ते सर्व कळा संपूर्ण मनोहर तथा सारा गुणवाळो छे अने महा बळवान् पराक्रमो छ माटे निश्चय ऋषभदेवस्वामी तमारा उपर तुष्टमान थया छे के तमोने अकस्मात् सूर्ययशा जेवो वर प्राप्त थयो, एवी रोते बोल्यो. तेओए मंत्रीने कयु के-जे अमारे स्वाधिन पति रहे तेने छोडीने अन्य पति करवानां नथी. त्यारबाद राजाना आग्रहथी मंत्रोए का के, तमारुं वचन अन्यथा करनार राजाने हुं निषेध करीश. मंत्रीना ए प्रकारनां वचनोने श्रवण करी तत्काळ ते ज समये श्री युगादिदेव समक्ष तेमनो पाणिग्रहण
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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