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________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान ॥२६॥ युद्धभूभिने विषे आव्यो. ते अवसरे प्रतिज्ञानो भंग करी अनिलवेग हस्तिना उपर बेसीने आवेल चंडप्रद्योतनने जाणी, बाणनी श्रेणीथी हस्तिना पगने विधि नाखी, नीचे पाडी, तेना दंतशूळ उपर पग मूकी, चंडप्रद्योतनने पकडी बांधीने तेना कपाळना विषे मारी दासीनो पति एवा वर्णाक्षरनु चिह्न कयु. त्यारबाद ते प्रतिमाजीने लेवाने माटे उदायन राजा विदिशापुरीनगरीने विषे गयो, अने घणा उपाय करवाथी पण लेशमात्र प्रतिमाजी नहि चालवाथी उदायन राजाने खेद थयो. ते समये प्रतिमाजी बोल्या के-वीतभयपत्तनने विषे धूलनी वृष्टि थशे, तेथी महारे अहींथी आवq नथी, तेथी उदायन राजा पाछो वळ्यो. मार्गने विषे वर्षाऋतु शरु थवाथी सैन्यनो पडाव नाखी त्यां ज रह्यो. वार्षिक पर्वने विषे (संवत्सरीने दिवसे) उदयनराजाए उपवास करवाथी रसोयाए चंडप्रद्योतनने का के-आजे तमारा माटे रसोइ शुं करूं ? रसोइयाना वाक्यने श्रवण करी चंडप्रद्योतने विचार कयों के कोई दिवस रसोइने माटे मने पूछता नथी अने आजे पूछवाथी अन्नने विषे झेर नाखी मने मारी नाखवो हशे ! एवो विचार करी रसोयाने पूछयु के-आजे बीजा कोइ केम जमनार (भोजन करनार) नथी के शुं? त्यारे रसोइयाए का के-आजे वार्षिक पर्व होवाथी राजा आदि सर्वेने उपवास छे तेथी चंडप्रद्योतने का के-अहो! ते ठीक स्मरण कराव्यु, मने खबर नहोती के आजे वार्षिक पर्व छे. आजे तो महारे पण उपवास छे; कारण के महारा मातापिता पण श्रावक हता. आवी रोते कपटथी चंडप्रद्योतने उपवास करेलो जाणी उदायनराजाए विचार कर्यो केतेनुं श्रावकपणुं तो में जाण्यु; परंतु जो एम ज कहे छे तो नामथो पण श्रावकपणुं प्राप्त करेल आ साधर्मिकने . * प्रतिमामा अधिष्ठित थइ देव बोल्यो.
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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