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आमुख
करुणाना समुद्र श्रीमान तीर्थकर महाराजाए संसारना अंत करवाना परिणामवाला भाविक भव्य जीवोने धर्मसाधन करवा माटे प्रतिदिन फरमान करेलुं छे, छतां पण संसारनी अटपटी जालमां जकडायेला, तथा प्रमादना परवशपणामां मुंजायेला जीवोथी न बनी शके तो पर्वने दिवसे अवश्य धर्मसाधन करवू ज जोइए, छतां पण गाढ कर्मोदयथी पर्व दिवसे पण धर्मसाधन न करी शकाय तो पर्वाधिराज महामांगल्यकारी पर्युषण पर्वने विषे तो जिनेश्वर महाराजनी आज्ञानुं प्रतिपालन करी संपूर्ण नीति-रीतिथी धर्मर्नु आराधन करी मनुष्य-जन्मने सफळ करवा चूकवू जोइए नहि, छर्ता पण बार मासना वार्षिक दिवसोने विषे पण धर्मसाधन कोइपण जीव न करे तो ते निश्चय वीतरागनी आज्ञानो भंग करनार थाय छे. आ वात विसारी देवा जेवी नथी. ____आ मूळ अष्टाह्निका व्याख्यानना कर्ता लघु पोशालना पूज्य श्रीमान् सोमहर्षसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यवर्य श्रीमान् उदयसोमसूरीश्वरजी महाराज छे. तेमना उपरथी अमोए घणा ज साधु-साध्वीओनी मांगणीथी भाषांतर बनावेल छे.
मुनि महाराजाओनी संख्या ओछी होवाथी गामेगाम चोमासा पहोंची शके नही, तेथी आ अष्टाद्विका पर्युषण पर्व- भाषातर अष्टाह्निका व्याख्यान पर्युषणना प्रथम त्रण दिवसमां श्रावको पण पर्युषण पर्व- आराधन करे तेवा इरादायी अने ज्ञानभंडारमा एक एक प्रत होय तो दरेक गाममां पर्युषण पर्वमां वांचवामां काम आवे तथा भाषांतर वाचवावाळा साधुओ होय ते पण जे गाममा चोमासु होय त्यां वांची शके तेवी भावनाथी अने उपरा-उपर साधु-साध्वीओनी मांगणीथी बे आवृत्ति