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________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान ॥१४॥ भावार्थ:-प्रबल पुन्यना पूर्ण उदयवडे करी मानवभवने पामी, जे जीवो दीन-दुस्थित प्राणीओना उद्धारने करता नथी तथा साधर्मिक भाइओनी भक्तिने करता कथी, तथा पोताना हृदयकमलने विषे वीतरागमहाराजाने धारण करता नथी ते जीवो हा ! हा ! इति खेदे दश दृष्टान्ते दुर्लभ एवा मानवजन्मने हारी जाय छे. वळी श्रावकोनी पेठे श्राविकाओने विषे पण न्यूनाधिकता रहितपणे वात्सल्य करवू. श्रीमान् कुमारपाल महाराजाए साधर्मिक भाइयोनी भक्ति करवा माटे प्रतिवर्षे ९२ लक्ष द्रव्यनो जे कर हतो ते मुक्त कर्यो हतो, तथा केटलाक साधर्मिक भाइओने द्रव्यादि सामग्री विना दरिद्र अवस्थावाळा देखी तेश्रोनो उद्धार करवा निमित्ते प्रतिवर्ष पोताना भंडारथकी एक कोटी द्रव्य आपी तेभोनो उद्धार कर्यों तथा धर्म प्राप्त थया पछी कुमारपाळ महाराजाए चौद वर्ष राज्य कर्यु, ते चौद वर्ष दरम्यानमां भग्न साधर्मिक भाइभोना उद्धार करवा माटे चौद कोटी द्रव्यनो व्यय कर्यो, जे माटे का छे के-पुन्यशाळी प्राणीओनी लक्ष्मी धर्ममार्गमां वपराय छे अने पापिष्ठ प्राणीओनी लक्ष्मी पापमार्गमां जाय छे. यदुक्तम्" भूपानां (क्षत्राणां) हयशस्त्रबंदिषु भवेत द्रव्यव्ययः प्रायशः, शृंगारे पणयोषितां च वणिजां पराये कृषौ क्षेत्रिणां । पापानां मधुमांसयोर्व्यसनिनां स्त्रीद्यूतमद्यादिषु,
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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