SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 725
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वात्रिंशं श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिच न्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः । प्रमादस्थानाख्यमध्ययनम् । प्रमादस्य स्थानानि । ॥३५६॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगों, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ॥३४॥ सोयस्स सइं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो॥ ३५॥ सहस्स सोयं गहणं वयंति, सोयस्स सई गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु॥३६॥ सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे हरिणमिए च मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मचुं ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं ।।। दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सई अवरज्झई से ॥ ३८॥ एगंतरत्तो रुइरंसि सद्दे, अतालिसे से कुणई पओसं। . दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चित्तेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ट गुरू किलिडे॥४०॥ सद्दाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे॥४१॥ ॥३५६॥
SR No.600356
Book TitleUttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandracharya
PublisherPushpachandra Kshemchandra Balapurwala
Publication Year1937
Total Pages798
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy