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________________ उपासक-त *SAE% ॥१९॥ 4 णपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियं अचवलं असम्भन्ते मुहपत्तिं पडिलेहेइ. रत्ता भायणवत्थाई पडिलेहेइ. रत्ता भायणवत्थाई पमजइ, रत्ता भायणाई उग्गाहेइ, २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे. तेणेव उवागच्छइ, २त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता एवं वयासी । " इच्छामि णं, भन्ते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए।" अहासुहं, देवाणप्पिया! मा पडिबन्धं करेह ॥ ७७ ॥ तए णं भगवं गोयमे समणेगं भगवया महावीरेण अब्भणणाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दुइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, रत्ना अतुरियमचवलमसम्भन्ते जुगन्तरपरिलायणाए दिट्ठीप पुरओ इरियं सोहेमाणे, जेणेव वाणियगामे नयरे. तणेव उवागच्छड. रत्ता वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कलाई घरसमुदाणस्स भिवायरियाए अडड||७८॥ तप से भगवं गोयम वाणियगाम नयर, जहा पण्णत्तीए नहा. जाव भिक्खायरियाए अडमा अहापजनं भनपाणं सम्म पडिग्गाहेड. रत्ना वाणियगामाओं पडिणिग्गच्छड. रत्ना कोलायम्स सन्निवेसम्म
SR No.600341
Book TitleUpasakdasha Shrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size13 MB
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