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भूमिका ॥
श्रीनवतत्त्वसुमङ्गलाटीकायां
॥ १०॥
उल्लेख करवो उचित धार्यो नथी ।
आ प्रकरण उपर श्री सुमङ्गला नामनी टीका करवा सम्बन्धी जे कार्य करवू ते एक प्रकारचें साहस तेमज बालचेष्टा छे एम म्हारा जाणवामां छतां 'शुभे यथाशक्ति यतनीयम्' न्यायने आधारे तेमन संस्कृतभाषामां लखवाथी ते भाषानुं तेमज तत्त्वज्ञाननुं परिशीलन थवाना उद्देशथी अने आ प्रमाणे लखवा माटे उम्मरमा बाल छतां बुद्धिमां अबाल तत्त्वजिज्ञासु मुनिवर्य श्री यशोविजयजीनी उदात्त प्रेरणा थवाथी पूज्य गुरुमहाराजनी आज्ञानुसार आ टीका लखवानुं म्हें म्हारा जीवनमा प्रथम मंगल कयु छे, अने ए प्राथमिक मङ्गलनी अपेक्षाए टीकार्नु ‘सुमङ्गला' नाम पण अमुकअंशे सान्वर्थ छ ।
आ टीकाग्रन्थमा स्थले स्थले आचारांग, सूयगडांग, श्री भगवतीजी , पन्नवणाजी-तत्त्वार्थसूत्रसटीक-योगशास्त्र नवतत्त्वभाष्य विगेरे अनेक ग्रन्थोना उपयोगी प्रमाणो आप्यां छे कोइ कोइ स्थाने ते ते सूत्रोना अखंडपाठो तेमज टीकाना पण जरुरी पाठो आपवा भूलायुं नथी । शक्य प्रयत्नो द्वारा ग्रन्थने जेटलो सुगम बनाववानो प्रयत्न थाय तेटलो कर्यो छे, विषयोनी स्पष्टता माटे योग्य प्रयास सेवायो छे अने उपयुक्त स्थाने यंत्रो तेमज आकृतिओ पण आपवामां आवेल छे; तोपण श्रुतनी अगाधता, विषयोनु गाम्भीर्य अने अतीन्द्रियपदार्थोनुं दुरावगाहपणुं होवा साथे म्हारी अल्पमति, प्रमादपराधीनता, तेमज छद्मस्थपणुं ए सर्व हेतुओथी अनेक स्खलनाओ थवानी अवश्य सम्भावना छ। सज्जनोने आ स्खलनाओने सुधारवा तेमज मने जणाववा साग्रह सूचना छे. परमगुरुदेव शासनमान्य व्याख्यानविशारद आराध्यपाद आचार्यमहाराज श्रीमद् विजयमोहनसूरीश्वरजी महाराजे आ ग्रन्थy साद्यंत अवलोकन करी अनेक स्खलनाओमांथी म्हारु संरक्षण कयुं छे, तेमज पूज्यगुरुदेव प्राप्तःस्मरणीय उपाध्यायजी महाराजश्री
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