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________________ iz' भूमिका ॥ श्रीनवतत्त्वसुमङ्गलाटीकायां >' ॥९॥ - नवतत्त्व प्रकरणनी हस्तलिखित एक प्राचीन प्रतिमा उपर जणावेल ६० मी गाथा जोवामां आवती होइ आ प्रकरणना कर्त्ता श्रीमान् धर्मसूरीश्वरजी महाराज होय तेम मानी शकाय छे । ए धर्मसूरीश्वरजी महाराज क्या सैकामां नवतच प्रकरणना विद्यमान हता ते संबंधी काइपण माहिती मळी नथी । वृत्ति अवचूर्णि-बालावबोधकारो आ गाथानो उल्लेख मूलकार। करता नथी एथी एम पण मानवाने कारण मळे छे के आमळ जणाववा प्रमाणे नवतत्त्वप्रकरणनी मूळ गाथाओ तो २७ ज छे, अने ते सिवायनी गाथाओ घणी उपयोगी जाणी कोइ योग्य पुरुषे प्रक्षेप को होय तेम कल्पी शकाय छे । ते २७ मूल गाथाओना प्रणेतानो समय तेरमा सैका पहेलानो होय तेम वृत्तिकार तेमज अवचूर्णिकारना ते ते प्रतिओना प्रान्तभागमा रहेल उल्लेखोथी साबीत थाय छ । वळी अन्य एक प्राचीन पुस्तकमां ' इति श्री वादिदेवसूरि विरचितं नवतत्त्वप्रकरणम् ' ए प्रमाणे वाक्य जोवामां आवेल छे ते उपरथी-जे अपूर्व प्रन्थमा स्त्रीनिर्वाण सिद्धि माटे ४२००० श्लोकनी रचना हती ते स्याद्वाद रत्नाकर ग्रन्थना प्रणेता, सिद्धराजनी सभामा कमद्रचन्द्र जेवा दिगम्बरवादीओनो पराजय करनार तेमज परमाईतपरनारी सहोदर कुमारपाल भूपाल प्रतिवोधक कलिकाल सर्वज्ञ भगवान हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजना विद्यागुरु पूज्यप्रवर भगवान् श्रीवादीदेवसरि महाराज आ प्रकरणना रचयिता होय तेम पण अनुमान थाय छे । उपर जणावेल 'इय नव०' गाथा तेमज 'इति श्री वादिदेव०' ए बन्ने उल्लेखोनी एक वाक्यता करवा माटे एम पण कल्पना करी शकाय के २७ गाथा रूप नवतत्त्व प्रकरणना कर्ता श्री वादिदेवसूरिजी महाराज होय, अने उपयोगी गाथाओना प्रक्षेपक श्री धर्मसूरिजी महाराजा होय ! प्रथम जणावी गया ते प्रमाणे आ नवतत्त्व प्रकरणनी मूलगाथाओ २७ होवी जोइए, अने ते ते विषयोने उपयोगी प्रासङ्गिक . - 卐 !
SR No.600335
Book TitleNavtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year1934
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size34 MB
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