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________________ | (उत्तरप्रकृतिषु) | परावृत्तित्वान्मि- परा मृदु-लघ्वोः ध्यादृशि मिथ्या० आहारक हस्थमुनी | सादि. नाम् त्वात् परावृत्तिस्वात् मि परावृत्तिध्याशि साद्य मिथ्यात्वस्य सम्यक्त्वतः पतितानाम् ला. ..आहारक न्मिथ्याशि देहोपसंह रतः सम्यम्सयमौ अभ-युगपत्प्रतिपि- सादि परावृत्तित्वात् मि थ्याशि मात्रत्वात्) समुद्घातस्य षष्ठे समये भज्यानां प्राप्ता-व्यानां त्सो (समय- त्वात् | त्वात् ना || | गुरु-कर्कशयोः | समुद्घातस्य मे समये " ति-सुवर्ण ९- परावृत्तित्वान्मिअगु०-स्थि०-शुभ- थ्याशि १३मान्ते व्या-स्वोदारणान्त स्वात् । थ्याशि DODGODSODE | | परावृ० परावृत्तित्वा- परावृ० मिथ्या भव्यानां निर्माणानां (२०) मिथ्याशि ज्ञा०५-द०४-वि०५ आदे- अभभव्या परावृत्ति परावृ० कुवर्ण०७ अस्थिरा |त्वात् मिनाम् मिथ्या० | शुभानाम् (२३) वात् नाम् ११०उक्तशेषाणाम् अधुवोदीरण- अधुवो | अधुवोदीरण- अधुवो- अध्रुवोदी- अधुवो। त्वात् । दी. त्वात् दी० | रणत्वात् दी० ... "समयाधिकावलिकाशेषे” इति संशासूचकम् स्वादोरणान्ते सादि विच्छे दत्त्वात् परावृत्ति परावृ० त्वात् मि मिथ्या० थ्याशि अधुवोदी- अधुवोरणत्वात् दी० |
SR No.600331
Book TitleKarmprakrutau Udirnakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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