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मु.दी.
॥२८॥
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विषय विकारयकी सर्व देवो निवृत्ति पामीने अने यति थइने एटले इंद्रिोनो संयम करीने देवलोकने विषे देवो विचार करे के, मारा पूर्वभवने विषे मारा आचार्य भगवानादि सुगुरु मुसाधु-के जेना पसायथी आवी समृद्धि देवपणानी मने मली, तो ते भगवान् महोटा गुणना भंडार अने जपतप संजमना आधार एंटले भाजनका अने मारा परम उपगारी हता, अने हुँ पूर्व भवमा जेहेनो सेवक हतो तेओ साहेबने हुँ विनय करी वंदन करूं. आची मनमा भावना करी अने उप. कारी जाणी इहां मनुष्यलोकने विष जिहां पोताना आचार्यादिक होय तिहां आवे, आवीने भक्तिपूर्वक वंदन नमस्कार करे.
आवो उत्तम विनयगुण मिथ्याष्टिदेवोमा किहांथी मले. एम श्री सूत्रकारे ठाणांगसूत्रमा फरमावेल छे तेनो रहस्य | जाणवानी इच्छा होय तो मुगुरुमहाराजनो सारी रीते संग करी तेमने पूछी अने रहस्य जाणवू. एम ग्रंथकार आचार्य भगवान् सूचन करे छे. .
॥ श्री गणांग सूत्रनां त्रिजा गणा मध्ये कथु बे के॥ - अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिन्वेसु कामभोगेसु अमुच्छिए अगिदे अगढिए अणझोववने तस्सणमेवं भवइ अस्थिणं मममाणुस्सए भवे आयरिएइवा उवज्झाएइबा पवत्तेइवा येरेइवा गणीइवा गणहरेइवा गणावच्छेएइवा जेसिं पभावेणं मएइमा एयारूवा दिव्वा देवड्डी दिव्वादेवजुइ दिव्वेदेवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए तंगच्छामिणं तंभगवं चंदामि णमंसामि | सकारेमि सम्मामि कल्लाणमंगलंदेवयंचेइयं पज्जुवासेमि..
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