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बहुणंसमणीणं बहुणंसावयाणं बहुणंसावियाणं हियकामए मुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेयसिए हियमुहनिस्सेसकामए सेतेणठेणं गोयमा ! सणंकुमारणं भवसिद्धिए जाव णो अचरिमे.
अर्थ:-श्री गौतम पूछे छे. (सणंकुमारेणंभंते देविदेदेवराया) सनत्कुमार हे भगवन् देवेंद्रदेवराजा (किंभवसिद्धिए) शुं भवसिद्धिक भव्य छे, (अभवसिद्धिए) अभवसिद्धिक अभव्य छे. ( सम्मदिही) सम्यक्दृष्टि (मिच्छादिही) मिथ्यादृष्टि छे, (परित्त संसारिक) तुच्छ संसारी छे, (अणंत संसारिय) अनन्त संसारी छे ( सुलभबोहिए ) सुलभबोधि छे, (दुल्लहबोहिए ) दुर्लभवोधि छे. (आराहए विराहए चरिमे अचरिमे ) आराधक छे झानादिकनो के विराधक छे, छेल्लोज छे भव जेइनो अणपाम्यो रह्यो छे अथवा अचरिम छे ? इति प्रश्न, उत्तर. (गोयमा सर्णकुमारेणं देविदे देवराया भवसिद्धिए ) हे गौतम! सनत्कुमार देवेंद्र देवराजा भव्य छे (णो अभवसिद्धिए) अभव सिद्धिक नथी ( एवं सम्मदिछि परित्त संसारी) इम सम्यक् दृष्टि छ, मिथ्यादृष्टि नथी. तुच्छ संसारी छे, अनन्त संसारी नहीं (सुलभ बोहिए आराहए ) मुलभवोधी छे, दुर्लभबोधी नहीं, आराधक छे, विराधक नहीं (चरिमेपसत्यंणेतव्वं) चरिम छे, अचरिम नहीं, प्रशस्त भला कहेवा, अप्रशस्त छोडवा (सेकेणणंभंते एवंवुच्चइ) ते स्ये प्रयोजने हे भगवन् ! एम कडं ? इति प्रश्न उत्तर. (गोयमा सणंकुमारे देविंदे देवराया) हे गौतम, सनत्कुमार देवेंद्र देवराजा (बहूणंसमणाणं बहूणं समणीणं ) घणा श्रमण तपस्वी साधुनो, घणी श्रमणी साध्वीनो (बहणंसावयाणं बहूणं सावियाणं) घणां श्रावकनो घणी श्राविकानो (हियकामए मुहकामए पत्थकामए) हितमुख, निबन्धन वस्तु तेहनो बांछक ( पत्थकामए आणुकंपिए) पथ्य (दुःख त्राण) तेहनो वांछक कृपायेंकरी सहित (निस्सेयसिए)निःश्रेयस
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