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________________ सुदी. EVERBeaponwapwomaNamamapan नामनो गाथापती रहेतो हतो. अने पुशा नामनी तेनी भार्या(स्त्री) इती.एक दिवसे भगवंत श्रीमहावीरस्वामी नगर बहारना सहस्र आम्रवन नामना ऊद्यानने विषे समोसर्या, ते प्रसंगे भगवंतनी देशना सांभळी कुंडकोलीयाए शुद्ध श्रावकधर्म अंगिकार कर्यो. एक दिवसे ते कुंडकोलीयो नगर बहारनी अशोकवाटिका प्रत्ये दिवसना पाछला पहरे आवी पोतानी नामांकित महान् मूल्यवान मणीमुद्रा अने उत्तरीय वस्त्र उतारी शिलापर मूकी, तेनी नजीकनी शिलापर बेसी सामायककृत धारण कयु. ते प्रसंगे एक मिथ्यादृष्टि देव त्यां प्रगट थई तेमनी मुद्रा अने उत्तरीय वन लई ऊर्ध्व आकाशमार्गे जई घुघरीओ विगेरेना ध्वनीथी कुंडकोलीया प्रत्ये कहेवा लाग्यो के," हे देवानुप्रिय ! गौशालकनो कहेलो धर्म अति श्रेष्ट छे, कारण के तप, संयम अने चारित्र विगेरे पुरुषार्थ शिवाय, अने कोईपण प्रकारनी मुश्केली शिवाय स्वर्ग अने मोक्ष मेळवी शकाय छे. माटे भगवंत महावीरनो प्ररुपेलो धर्म योग्य नथी. कारण के ते तप, संयम, चारित्र विगेरे महान् पुरुषार्थ अने उपाधिमय छे. माटे हे कुंडकोलीया तुं ते धर्मनो त्याग करी में कहेला गौशालकना सत्य धर्मनो अंगिकार कर, अने आ महान् उपाधिथी मुक्त था." मिथ्यातीदेवना आ वचनो श्रवण करी कुंडकोलीयो ते देव प्रत्ये कहेवा लाग्यो के, "हे देव तें कहेलो धर्म जो सत्य होय तो महान् ऋद्धि सिद्धिवाळी उत्तम देवगतीने ते प्राप्त करी छे, ते शें कोईपण प्रकारना पुरुषार्थ अथवा प्रयत्न शिवाय प्राप्त करी छे के पुरुषार्थ के प्रयत्नथी प्राप्त करी छे ?" कुंडकोलीयानां आ वचनो श्रवण करी, देव कहेवा लाग्यो के, “में कोईपण प्रकारनो पुरुषार्थ किंवा प्रयत्न कर्यो नथी." देवनां आ मिथ्यावचन सांभळी कुंडकोलीयो कहेवा लाग्यो के," जो कोई पण प्रकारना VERSammelaneouswae/app/BAD/EDO
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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