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________________ oratadaan s 500660/00NORAT/60/400 | १५ ॥ मंत्री सुबुद्धिए निर्मल कीधो, फरहोदक धर्म काज ॥ चित्र सारथि हयदमन प्रकास्यो, उ. | परदेशी नृपराज ॥रे जी० ॥ १६ ॥ संनली कृष्ण नेमीतणे मुख, घारमतीनो दाह ॥ घोषण कारवत नगरी मंमयो, चारीत्रनो नबाह ॥रे जी॥१७॥ कुमर जमाली मेघमर वर, थावच्चादिक | सुणीये ॥ एहने संजम लेवा अवसर, श्रोत्र आगम नषीये ॥ रे जी० ॥ १७ ॥ लाखे लाखे ओघो पमघो, नापित लाख बुलावे ॥ सीस नणी दीखेवा कारण, गुरुने किम विहरावे ॥ रेजी. ॥ १ए ॥ संयम ग्राही कूण श्शाने, ऊतारे सिंगार ॥ ते लेश् दृढ चोयण थापे, माश् पमुह परि वार ॥ रेजी० ॥ २०॥ चित्रे केशी अवग्रह काजे, थाढवीयो वनमाली ॥ तिंयुकवासी यदे बंहै। नण, कीधी बन्नक्ति टाली ॥ रेजी० ॥१॥ सोवनमयि निजरूपे प्रतिमा, जालि घरंतर वाली है। हैं|| धर्म हेत योगणीसमो जिणवर, जो जो हीये विमासी ॥ रेजी० ॥ २२ ॥ सिंहो नामे साधु सि-|| ॥१६३॥ | रोमणी, मोटी पोके रोयो ॥ रेवश् कीधो श्राधाकर्मिक, उषध मुनिने ढोयो ॥ रेजी० ॥ २३ ॥ | नागसिरि धर्मघोषे होली, केशीराय प्रदेशो ॥ विमलवाहनने साधु सुमंगल, क्रोधे नस्म करे aaooncotavamevataayacotreap -0080conce
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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