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________________ Co/do/horatadp/song/GanapatNDROc/aoe सहूए वरते ॥ ते उजेदी पंचमे लाग्या, ते किम मारग निरते ॥ रे जी० ॥ ७॥ नक्ति काजे श्रा| रंन करावे, अनुमोदे वली कीधो ॥ सश्हथ करतां दूषण बोले, अवह पंथ ए लीधो ।। रे जी० | |॥ ॥ पूजानी विधि नाख्या पाखे, मुगध लोक किम जाणे ॥ त्रोमी मूल फल लान ते वंडे, | | पहुता पहेले गणे ॥ रे जी० ॥ ए॥ गुरुगम गुरुगम करि करि वांचे, आगम जण जण आगे ॥ प्रगट अरथ तेह तारण समरथ, तोपण मूढ न जागे ॥रे जी०॥ १०॥ श्रेणीक नरवै नंदन | | दिन दिन, सहस आठ इक लाख ॥ वीर प्रवृत्ति जाणवा कारण, देतो केहनी नाख ॥रे जी०॥ | ११ ॥ स्वामी आगमन संनली साढा, बारह लाख वधाइ ॥ आपी चतुरंग सेना मेलवी, वंदण | पहुता नाश् ॥रे जी० ॥ १५ ॥ इणपरे बहुला राजा श्रावक, जे बारह व्रतधारी ॥ घणे महोडवे | वंदण आवे, कहणे कवण अधिकारी ॥ रे जी० ॥ १३ ॥ सूरियाने जिन प्रतिमा पूजी, सतरह नेद विशाल ॥ नक्ति कहीने नाटक मंमयो, परदेशी दानशाल ॥रे जी० ॥ १४ ॥ विजयादिक | सुर सोहमशंदे, दोवर राजकुमारी ॥ केहतणे उपदेशे पूजी, प्रतिमा बहु विस्तारी ॥रे जी० ॥ Baareenavratrapradema/ARO/ARGETARVEER6000
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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