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________________ en e चा०नि०|| आग्रहमा पमी ते वातने कबुल नही करे तो तेने पराणे कोण मनावी शके. जागतो सुश् रहेल || पानि तेने कोण उगमवामां समर्थ थाय? आंखो बतां जे जोशे नही तेने पराणे कोण बताववाने समर्थ || थशे? माटे जेने तत्व ग्रहण करवानी श्छा हशे अने खोज करनार नवनयनीह जिनप्रणीत सूत्राराधक हशे, ते पुरुष आपो आप शोध करी सत्य अंगीकार करशे. एमां अमारे का आग्रह करवानी जरूर नथी.कोइपण जिज्ञासु थप तेने शुद्ध रस्तो बताववो ए अमा काम डे पड़े | करो न करो ते एनी मरजी उपर . हवे धर्मशास्त्रमा बतावेल चातुर्मासी त्रण पूनमनी थायडे | ते वतावीए बीए. श्री सुयगमांगसूत्र तथा तेनी वृहद्वत्तिमां था प्रमाणे फरमाल करेल ः ___ " चाउद्दसम्मुहिछ पुममासिणीसु" आ मूल सूत्र ने तेनी वृत्तिः तथा चतुर्दश्यष्टम्यादिषु तिथिषूपदिष्टासु महाकल्याणिकत्वेन प्रसिधासु तया पौर्णमासोषु च तिसृष्यपि चतुर्मासकतिथिष्वित्यर्थः । एवंनूतेषु धर्मदिवसेषु सुष्वतिश. /S/DEVDrineetanasas NDJasterstanane/UDEOGenuva atravana
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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