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________________ Neves Motapaapaavanemonitewwamre/AAMTEVAAMREN | रमा पोताना संघामाना जे साधु हता तेने पण संदेशो कदेवराव्यो जे हुं आq टुं त्यां सुधी तमे रहेवा माटे नक्की करशो नहि. संदेशानुं कारण एज के एकेक राजाना संबंधथी (वली ती. सरूं पेदा थवाना संनवथी) हरकत पमे तो बीजा स्थानांतर जर शकाय. ते नगरनो राजा जे | सतवाहन तेणे सारं मान आप्युं, ने ते पश्गणनगरना साधुये पण आवकारसाथे नगरमा प्रवेश कराव्या, अने तेज समय कालकार्ये कयु के नाजवा शुद पांचमनाज श्रीपर्व , ने ते वात | पश्चगणनगरना साधुये कबूल करी. ते प्रसंगे राजाये कयु के ते दिवस तो माहरे इंध्याग थ. || वानो तेथी साधुचैत्यनु आराधन करी शकाशे नहीं, माटे उपनो दिवस राखो. आचार्ये कह्यु के पांचमनुं श्री पर्व उद्धंघाय नहीं. त्यारे राजाये कयु, चोथ करो. श्रावा कारणथी राजाना आ|| ग्रहवमे चोथ करी. परंतु चलावाने माटे करी नथी एम स्पष्टरीते चूर्णिकार कही बतावे वे अने जे को लखे जे के चोय आर्यकालकमहाराजनी आझाथी करिये लिये, तो कालकसूरिये नगर|| मां प्रवेश करतांज केम कडं के नामवाशुद पांचमनां पजुसण , ने साधुये पण ते वात मान्य
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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