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________________ रास. ॥१२९ ।। ॥ ३५ ॥ जिन वंद फल जेटलो, ते जिन प्रतिमा वंदण होयक || रायपशेणी जाखीयो, हृदय नयन धामी जोयके ॥ श्रुतनो० ॥ ३६ ॥ प्रतिमा पुस्तक सारिखा, दंसण नाणतो बे अंगके ॥ एक ढंको एक आदरो, इणपरे दुवे त्रिदुनो जंगके ॥ श्रुतनो० ॥ ३७ ॥ पुस्तकतो पछी हुवा, प्रतिमानी जोवो बुन्या दिके (अनादि ) | नवी कही बोगवे, ते तो पमिया मिथ्यावादके ॥ श्रुतनो० ॥ ३८ ॥ तेहने जो न आराधीये, जेदथी हुवे परजव उपकारके ॥ इमतो कृतघ्नज थाइये, इम केम लहीये वो पारके || श्रुतनो० ॥ ३९ ॥ रूसो सजण जब इसो, विड्सो दुरजण मूरख लोकके ॥ जिनवर आण वदंतमा, तेम जावे जेम विरुयो न दोयके ॥ श्रुतनो० ॥ ४० ॥ श्राज्ञा आचरणायें मिल्यो, परिक्रमणो करोज्यो बिहु काल के || बिदु विण बंदे व्यापणे, करतां पमीये जव जंजाल के ॥ श्रुतनो० ॥ ४२ ॥ तेहनी संगति टालज्यो, जेह विराधे देव गुरु धर्मके, नित समतारस कीलज्यो, मननो टाली मिथ्या जर्मके ॥ श्रुतनो० ॥ ४२ ॥ श्रीपार्श्व चंद्रसूरि विनवे, जिन प्रतिमा | जिनवरनी बुद्धि के || एकमना याराधज्यो, लहेज्यो मनवंबित फल सिद्धिके ॥ श्रुतनो० ॥४३॥ रास. |॥ १२९ ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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