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प्रश्नोत्तर
नोचर
॥१२५॥
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अथ पुद्गल अव्यना पर्याय तेना नेद २. एक व्यंजनपर्याय अने बीजो अर्थपर्याय, त्यां || है | व्यंजनपर्यायना नेद ५. एक शुदव्यंजनपर्याय बीजो अशुद्धव्यंजनपर्याय, त्यां अविनागी | एक परमाणु एक वर्ण एक गंध एक रस बे स्पर्श एवं पांच गुण संयुक्त दिगंम्बरमते षट्कोणना
आकारे श्वेतांबरमते गिरदाकार शुद्ध आकाश प्रदेशने विष एवो शुद्ध परमाणु रहे , ते शुद्ध | व्यजंनपर्याय तथा व्यणुकादि स्कंध सूदमरूप स्थूलरूप त्रयंशचनरंशादि अनेक आकारे परिण मे, ते अशुद्धव्यंजनपर्याय तया पुद्गलना अर्यपर्याय तेना नेद २. एक शुद्धअर्थपर्याय बीजो अशुद्धअर्थपर्याय, त्यां शुद्धपुद्गल परमाणु आपणा वर्णादि शुद्ध गुणे करी षट् गुण हानि || वृद्धिरूप परिणमे ते शुद्ध अर्थपर्याय. तथा घ्यणुकादि स्कंधना जे वर्णादिक गुण तिवमंदादि || तरतम नेदे परिणमे ते अशुद्धअर्थपर्याय, पुद्गलव्य उत्पाद व्यय अने ध्रौव्य रूप . द्रव्य पुद्गल परमाणु रूप ध्रुव . पर्याय थको उत्पत्ति नाशरूप ले. इति पुद्गलप्रव्यव्याख्यानं.
अथ धर्मव्य शुद्ध लोक व्यापी जाणवो तेनो गुण गति लक्षण जाणवो. तथा धर्मव्यना
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