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________________ Dabangaliviame/ D/Savode0s/u/IN/1000/ व्यय अने ध्रुव संयुक्त जे. जीव द्रव्यथकी ध्रुव पर्यायथकी उत्पत्तिरूप विनाशरूप बे. इति द्रव्यगुपर्याय व्याख्यानं ॥ ____अथ पुद्गल अव्यनो स्वरूप कहे , त्यां पुद्गलमय महाखंधनी अपेक्षाये लोक व्यापी २. परमाणुनी अपेक्षाये लोकना एक देश मात्र रहे बे. हवे पुद्गलप्रव्यना २ नेद एक शुद्ध पुद्गलप्रव्य अने बीजो अशुद्धपुद्गलप्रव्य तिहां शुद्ध अविनागीअवेद्य अनेद्य एहवो एक परमाणु आकाश प्रदेशने विषे रहे ते शुद्धपुद्गलप्रव्य तथा द्वयणुकादिक महाखंध पर्यंत स्कंध रूप जे पुद्गल ते अशुद्धपुद्गलप्रव्य कहीए. अथ पुद्गलप्रव्यना गुण तेना बेनेद. एक शुद्ध गुण बीजो अशुभ गुण त्यां अविनागी परमाणुने विषे रह्या जे वर्णगंधादिक गुण ते शुद्ध गुण तथा वीसगुण आदि देश अनंत गुण मिश्रित एवा च्यणुकादिक स्कंधना जे गुण ते अशुद्धगुण. स्कंधने विषे वीसगुण मध्ये सात गुणनी मुल्यता , तेर गुणनी गौणता बे. NNEVEReapearacetamansamayanayaneer
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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