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________________ G - DI - NamasaravasavamavaraswayamavsamaA मोहनी ए। चउथो पंचम बह, सत्तम अहमा, जीवगणे परे एहनीए, नवमानानव नाग, कीजे पढेले जागे । एक सत्त अत्रीसे लणीए । बीजे प्रकृति बावीस । एक सत अधिकीय। थपत्रीसथी सोल अवगिणीए ॥४३॥ थावर सूक्षिमनाम तिरिगति, तिरिपुत्वनिरकड़िक श्णपरेजणोए। यातपने उद्योत, थीणद्धि निमानिझा,पयलपयल गणोए। गबिति चरिंदि, जाति साधारण,नाम कर्म ए सोलमीए । त्रीजे नागे चउद, एकसो आगली, आठ बावीसथी नीगमीए ॥ ॥ अप्रत्याख्यानीचार, चारप्रत्याख्यानी,आटे क्रोधादिक टलीए। चोथे नागे नपुंसक वेद टल्यो, तिहां एक सयथी तेर आगलीए । पंचमे नागे बार, एकसो अधिकीय, स्त्रीवेद टाली संनलीए । एक सत्त बढेन्नागे, बह फ्यमी विणु, हास्यादिक गिणतां मिलीए ॥ ४५ ॥हास्यवरति रति, सोगन्नय दुर्गबाए । सातमे पंचाधिक जाणज्योए । पुरुषवेद परिहार, ठमे संजजनो । क्रोध टालि चल वखाणज्योए । नवमे नागे मान, संजलनो टख्यो। तेणे एकसोत्रण चित्त धरोए । बिहुत्तर सुहम संपराय, थानके थानके सत्ताए । मायाविणु लेखो करो ए ॥४६॥ बारमे संजलनो खोन, बेला ANDANVARVINDAASADARVAeroge
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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