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________________ 31१०८|| विस्तार शरीरप जातुं ॥ पांचइंडिय अनंत प्रदेशिक जाणवा. एकेकी इंद्रिये अनंता पुल बे, श्रप्रियनो विषय जघन्य थकी अंगुलनो असंख्यातमो जाग, उत्कृष्टो विषय योजन बार. चतुरेंद्रियनो विषय जघन्यथकी अंगुलनो असंख्यातमो नाग, उत्कृष्टो विषय एक लाख जोजन कारो, घ्राणेंद्रियनो विषय जघन्य अंगुलनो संख्यातमो नाग, उत्कृष्टो विषय योजन नव, रसनेंद्रियनो विषय जघन्य गुलनो श्रसंख्यातमो जाग उत्कृष्टो योजन नव, फरसनेंद्रियनो विषय जघन्य गुलनो संख्यातमो जाग उत्कृष्ठो योजन नव. पांच इंद्रिय असंख्यात आकाश प्रदेश अवगाढ बे. इंडियना बे जेद जाणवा ते कया ? द्रव्येंद्रि१ने जावेंद्र २, त्यां द्रव्येंद्रि ७ जावेंद्रि ५ ॥ श्रोत्र १ नेत्र २ प्राण २ जिह्वा १ फरस १ एवं द्रव्येंद्रियाव जाणवा ॥ ग०म० ॥१०८॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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