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________________ जीवना प्रदेश ४, जीवनां अध्यवसाय स्थानक, ज्ञानावरणादिक याठ कर्मनो स्थितिबंध, जेणे अध्यवसाये करे ते स्थितिबंधनां अध्यवसाय स्थान थे, अनुभाग, ज्ञानावरणादि कर्मना जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट जेद जिन्न जे रस विशेष ६, तथा जोगच्छेय पक्षिभाग मनवचनकाय विषश्यो वीर्य ते योग कहीये, तेना केवळी प्रज्ञाए बेदीने जुया जुआ जे विभाग 9, तथा उत्सर्पिणी अवसर्पिणी बेट कालना समय जेटला छ, तथा प्रत्येक अनंतकाय टाली बोजा पृथ्वी, आप, तेज, वाउ, वनस्पति, स प्रत्येक शरीरी जेटला ए, तथा निगोद सूक्ष्म बादर अनंतकाय वनस्पती जीवना निगोद क| देतां शरीर १० ए दश असंख्याता प्रदेपा घालीये तेवार पढी त्रणवार वर्गकरीए, जेम पेहलो को | तेमज, एम करतां जेटलो होय ते जघन्य परितानंतो होय, ते जघन्य परितानतानी राशि पर | स्परे गुणाकार करतां जेटली राशि होय, एटले जघन्य युक्तानंतो दोय, जेटला जघन्य युक्तानंते रूप तेटला नव्य जीव केवलीये दीवा जघन्य अनंतानंतो केटलो होय ? जघन्ययुक्तानंतक राशि एकवार वर्ग करी वळी बीजीवार वर्ग करीए एटले जघन्य अनंतानंतो होय, दवे उत्कृष्ट नं
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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