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________________ नंतीवार कोधा ॥ श्रव्य जीव आगामि काले अनंता पुद्गलपरावर्त्त करशे ॥ तो मुहूतमित्तंपि कासिदु जेहिं सम्मत्तं ॥ तेसिं वढ पुग्गल, परियहो चेव संसारो ॥ १ ॥ अंतर्मुहूर्त्त मात्र पण जेणे. सम्यक्त्व फरस्युं होय तेने संसार अर्ध पुद्गलपरावर्त्तथी थोटो संसार जावो ए निश्चय करयो ॥ सम्यक्त्व रहित जव्यजीव होय तेने पुद्गलपरावर्त्त थाय अथवा न थाय, परं प्रांते मोक्षगति पामे ॥ एकेके जीवे तितकाले अनंता पुद्गलपरावर्त्त कीधां ए सही. एकेके जीव एवा बे तेने आगामिकाले कोने एक पुद्गलपरावर्त्त, कोइने बे, कोइने ऋण, कोइने चार, एम कोइने संख्याता, कोइने असंख्याता, कोइने अनंता, जे नव्य होय तो अनंता | पुद्गल परावर्त्त करी बेहेने अंत करे - अल्पसंसार करी मुक्ति पामे, जेथी अनंता अनंते दे जाणवा. अनव्यने अनंतानंते काले पण संसारनो अंत यशे नहीं ॥ ट्वे संख्याता, असंख्याता ने अनंताना जेद ब्यासिया कर्मग्रंथ अनुसारे सूत्र arrot it al.
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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