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________________ ॥९७ एक जोजनप्रमाण मो, एटलोज पहोळो कुवो, ते कुवो देवकुरु उत्तरकुरु क्षेत्रनो उरूणो सात | दिवसनो तेने शरीरे अंगुल प्रमाण एक रोम ते सात वार बाठ गुणो करवो एम करतां सातमी वार रोमखंम (रुवामाना टुकमा) वीस लाख सत्ताणुं सहस्र एकसो बावन एटला थाय. ए रोमखम स्थूळ जाणवा. जेह नणी संख्याता एज थया. परं असत्करूपनाये एकेक रोमखमना असंख्याता कल्पीये एवा जे सूक्ष्मखम, तेणे ते कूवो गाढो निन्नच नरवो. ते ऊपर बासठ योजनने पटे गंगा नदी वेहवराये पण एक रोमखम खेसवी न शके. तथा इंद्र सबल प्राणे करी वज्र मूके पण एक रंथामुनेदे नहीं, अथवा अग्नि ते ऊपर मूकवाथी थोल्हा जाय, पण एक रोम प्रज्वले नहीं एवा कठिन नरवा, अथवा चक्रवर्तिन कटक सघj ऊपर वही जाय तोपण एक रुवाउँ खसे नहीं एवोनरीने पठी सो सो वरसे एकेको खंग काढवो. ज्यारे ते कुवो सर्वथा प्रकारे खाली थाय त्यारे एक पक्ष्योपम कहेवाय, एवा दस कोमाकोमी पस्योपम जाय त्यारे एक सागरोपम थाय. एवा वीस कोमाकोमी सागरोपम जाय तो एक कालचक्र ASTRADAVavateeMAMDAS/awaavanasanaaaaaaav ९ ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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