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________________ ब०स्वा ॥ ९१ ॥ ॥ सामायिकना बत्रीश देोषनी स्वाध्याय ॥ (त्रिताल चोपाइ ) पहिला प्रमुं जिण चजवीश, सुगुरु नाम समरुं निशिदीश ॥ पनशि श्रावकने अधिकार, सामायिक विधि श्रुतवाधार ॥ १ ॥ आरत रौद्र तणो परिहार, अवधि सीम संजम थाधार ॥ आणी समतानो परिणाम, सामायिक करवो अभिराम ॥ २ ॥ तेह तपाढ़े दोष वत्रीश, ते पनशि मन धरी जगीश ॥ जे सांजळी श्रावक खप करे, देलें जिम जवसायर तरे ॥ ३ ॥ वस्त्र बांह वाळी पालवी, प्रथम दोष ए जुगतो नथी । आधुं पाहुं सण थाय, बीजुं ए दूषण | कद्देवाय ॥ ४ ॥ दृष्टि न राखे एका दिशे, जोवे चपळपणे चिहुं दिशें ॥ त्रीजो दोष सामायिक जाण, व्रत घरी परिहर ही अने आए ॥ ५ ॥ अल्प बहुल लागे सावऊ, चोथे दोष निवारो कज्ज ॥ पूंठ जीत पाटि ने स्तंन, पंचम दोष जे ल्ये श्रवतंन ॥ ६ ॥ यति संकोने अंग उवंग, उठो दोष करे व्रतनंग ॥ आलस मोमे ए सातमो, गंजे करमक ए आठमो ॥ ७ ॥ नवमो मेल उतारे जेद, ब०स्वा० ॥ ९१ ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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