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________________ - GRANDEBED/0BUDAm/awo परसोयणयाए २, परफूरणयाए ३, परतिप्पणयाए ४, परपिट्टणयाए ५, परपरियावणयाए ६, बहुणं पाणाणं नूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुख्खणयाए , सोयणथाए ७, रणयाए ए, तिप्पणयाए १०, पिट्टणयाए ११, परियावणयाए १२ आ बार प्रकार बंधना , अने अमणन्नसहा १, रूवा, गंधा, फासा, असा, मणदुइया, वयदुइया अने कायदुहया आ ७ जुक्तवाना प्रकार ले. वेदनी कर्मनी | स्थिति त्रीश कोमाकोमी सागरोपमनी अने अबाधाकाळ त्रण हजार वर्षनो . ___मोहनीकर्म प्रकारे बंधाय अने अव्यावीश प्रकारे नोगवाय ले ते एवी रीते के-तिव्वकोहे , तिवमाणे २, तिवमायाए ३, तिव्वलोहे , तिवदंसणमोहणीजाए ५, तिवचरित्तमोहणी जाए ६, या प्रकार बंधना बे, अने अनंतानुबंधी क्रोध के जे पर्वतनी रेखा सरखो १, अनंतानु बंधी मान के जे पथराना थानला जेवो २, अनंतानुबंधी माया के जे वांसमानी गांव समान |३, अनंतानुबंधी लोन के जे किरमजना रंग समान . या चारे नरकनी गति थापेले अने जावजीव. रही समकितनो घात करे बे. अप्रत्याख्यानी क्रोध पृथ्विनी रेखा समान १, मान Pos/monomenonevaasaseGBan क ळBARSoad -
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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