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________________ अ०बो० 116'41 अथ ष्टकर्म संबंधी बोल विचार. या कर्मना स्वभाव कोना जेवा बे ए संबंधी नो विचार नवतत्त्वनी अंदर कथन करेल बे. ते आठे कर्म पैकी ज्ञानावरणी कर्मव मे अनंत ज्ञानगुण ढंकाइ जाय बे, दर्शनावरणीव अनंत दर्शन गुण ढंकाइ जाय बे. वेदनी कर्मत्रमे अनंत अव्यावाध आत्मिक सुख रोका जाय बे, मोहनी कर्मव मे क्षायिक समकित गुण रोकाइ जाय बे, आयुकर्मवमे अक्षय स्थिति गुण रोकाइ रहे बे, नामकर्मना उदयवमे मूर्त्तिगुण रोकाय बे. गोत्र कर्मवमे अगुरुलघु गुण रोकाय बे छाने अंतराय कर्मव अनंतवीर्य आत्मशक्ति रोकाय बे. ज्ञानावरणी कर्म प्रकारथी बंधाय बे, ते ( कर्मबंधनी विगत श्री भगवतीजी मां | बे.) ए के - " नाप मिलियाए ” - ज्ञानीनुं मुंकुं बोले १ " नायनिन्दवण्याए" ज्ञानीनो उपकार न माने २, “नांतराएं" सूत्र जणनारने विघ्न करे. ३, "नागप्प सेणं” ज्ञान घने ज्ञानी ऊपर अ० बो० ।। ८५ ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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