________________
RDPREDIBADVSSO9e0BVENavara
वियोग थतां अमचण आवती नथी. पुनः जीवने कर्मनो कर्त्ता कहिये लिये ते व्यवहारथी बे. जेम कुंभार घमानो कर्त्ता , पण निमित्त मात्रथी ते कर्त्ता कदेवाय , तेम जीव पण कर्मनो निमित्त कारणज बे, पुजलास्तिकाय अव्य ते लोकाकाशमां सर्व स्थळे फरतो . सकर्मा जीपण एमज . ते ज्यारे एक क्षेत्रावगाही थाय डे त्यारे ग्राह्य ग्राहकन्नाव संबंधे तथाविध व्यादि | सामग्री संयोगवझे कर्मपणे थाय जे. ते बनता कर्म प्रत्ये जीव पोते निमित्त कारण थाय ने तेज | कर्म जोगववा वखते उपादान कारणपणे थाय , ते कर्मस्थिति मात्रायेज रहे डे ते सादि | एम हमेशांनो नियम , ते माटे अनादि कहेवाय , तेनो वियोग . जेम खाणमां पेदा थयेवं सोनुं सदा माटीनी साथे नेगुंडे; परंतु तथाविध उपायवमे सुवर्ण ते माटीथी रहित थाय डे, तेमज | जीव पण प्रवाहे अनादि कर्म संबंधे सहित; पण योग साधनादि सामग्री संयोगे शुद्ध अव्यरूप | थाय एमज सद्दह, योग्य . ॥ इति महामहोपाध्याय मुनिश्री नाणचन्द्र कृत प्रश्नोत्तरम् ॥
INDODENDNDODO
NDONDO