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________________ याचि० मागुरुचि ॥८३ nayamvara-ODD9a09/09/9/D/BRAID/am ... दशसूक्ष्मसंपराय गुणगाणुं एटले के-सूक्ष्म कोहीकृत लोन वेदतां शेष मोहनीयना क्यहै || वके तथा उपसमवमें जे विशुद्ध अध्यवसाय ते दशम गुणस्थानक कहेवाय जे. १०.. अग्यारमुं उपशांतमोहनी बद्मस्थ वीतराग गुणगणुं एटले के-जेम पाणी नीतरवाथी तेमांनो मेल तळिये ठरी जतां पाणी निर्मल थाय तेम मोहनी कर्मना उपसमवाथो अध्यवसाय निर्मल थायडे. तेमज कषाय सत्तामा रहे ते माटे कषाय उदय थया के मोलायला पाणीनी पेठे मलीन अध्यवसाय थवानो संनक होय , तेना लीधे उपशांत मोहनी कहेवाय . या गुणगणथी अवश्य पालो पमे अनेजो मरे तो अनुत्तरवासि देव थाय त्यां पण चोथु गुणगणुं प्राप्त थाय जे. अन्यथा | दशमुं प्राप्त थाय जे. ११ . ___ बारमुं क्षीणमोह वीतराग बास्थ गुणस्थानक एटले के-सर्व मोहप्रकृति खपाव्याथी मोहनी सत्ता दूर थाय तेथी अत्यंत विशुद्ध अध्यवसायवंत थाय . १२ .. तेर# संयोगी केवळी गुणगणुं एटले के-केवळज्ञान प्राप्त थया पली ज्यां लगी बादर योग MareraDaNDawesoremapeasamoovarera
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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