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न प्रकाश प्रमाणहुको ध्यान ध्येय धारनाकी मुख्यता सबै मिटि, जात रहे वाद विवाद के | फिसाद सबी थापना उथापनाकी चाह चित्ततैं हटी ॥ सुखकी न इछा अनइछा दुखढुकी नांदि उदै कर्म बंध तिहुंकी घटना घटी, पायौ निज धाम तब किरियाको कौन काम सुख विसराम सोई सोई रटना रटी || ३ || पढ्यो तुं पुराण पै पुराणकौं न पहिचान्यो आगमतें अगम लखकी नलखी गति, वेदकु पढे तैं भेद पायो न निरंजनको करमके व्यंजन (नै) मैली करि राखी | मति ॥ नहीं पहिचान ब्रह्मग्यानकी नइहै जातैं जप तप ध्यान व्रत पूजा न फलति यति, नरमके टारे बिनु आतमा निहारे नांदि यातमा निहारे बिनु कैसेंहु न मुगति ॥ ४० ॥ फैल्यो चिह्न र्नर वार पारको उपावै नांहि मोदकी कोर नौर देखत लगत कर, क्रोध वर्गवानल जलत र आठौ जाम राग रु दोष कछ मछनिको जो घर ॥ जनम मरणतैं जयानक लगति जामैं आपदा मिलत नदी लोनकी उवै लहर, ऐसो नवसागर दुखाकर बखान्यौ जिनबिना ब्रह्मग्यानके कैसैं न गयो तर ॥ ४१ ॥ बग धरै ध्यान मौन फणी पैं आहार पौन मछ कह जल