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________________ HereveaavtanasvaasaDAIIMI-Manoosarevasanapremier अंतराले ऊतरे नही वलि तेरसि चउदशि, पूनम लोगस्स चारि चारि काउसग बिहु दिवसी || जो न करे तो वरष लगी जब ऊमे धूलि, तव असजाइ सूत्र सहु नणिये नहु मूलि ॥७॥श्राशु || है। शुदि पंचमी पहर बिहु थकी गिणीजे, पमिवे लगी गिणि सूत्रतणो सजाय न कीजे ॥श्म उत्पा। तिक नेद कह्या त्रीजो हिव कहिये, तासु नाम सादिव्य जेह गुरु वचने लहिये ॥ ॥ नगर|| तणा थाकार सरिस गयणांगण होई, ते नणिये गंधर्वनगर विरचे सुर कोई ॥ अग्नि वर्ण राती है। || प्रना जलती दीसे दिशि, ते दिग्दाह विचारि जाणि नणिये आगम किसि ॥ २५ ॥ गयणि ऊबक्के वीजली विणुकाले जिवारे, उल्कापाते एक पहर असज्जाइ तिवारे ॥ गाजि अकाले प्रहर उन्निसकाय निवारे, इणिपरि जे परिहरे दोष ते आप उतारे॥३०॥पख्खि अजुश्राले पमिव बीज || | त्रीजें इक जाम, निशिनो पहिलो जाणिजो असका गम ॥ तिणि दिशि संध्या निरति नही तिणि काल न सूझे, पाउसी श्रागम विचार गीतारथ बूझे ॥३१॥ reOVIE/aapasvarumouDEADVasantavas
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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