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________________ ॥ अथ श्री अस्वाध्याय सित्तरी ॥ VanavaravasawadevasavBaaaasaavaANTRVAIMDAE (चोपाइ छंद.) श्री गुरुपयनमि नामीशीश, सूत्र नणणविधिकहणि जगीस॥नणिये गुणिये जिणि परि नही, ते पुण कहिशुं गुरुमति सही॥१॥ अर्थ प्रकाशे श्री अरिहंत, सूत्र रचे गणधर गुणवंत ॥ सूत्र अर्थ श्म दोय प्रमाण, परंपरागम नाखे जाण ॥२॥ गम कहिये त्रिजुवन सार, आगम नवियण तारणहार॥ तेहवो जगमा कोइ न सहुं, श्रागमनी जामलि जे कद्यं ॥ ३॥ ए आराधी शुद्धाचार, जन अनंत पहुता नवपार ॥ए विराधी संसार अनंत, कीधो सही दूरि नववंत ॥४॥श्म नाख्यु जे चोथे अंग, गुरु पूठी जाणजो प्रसंग ॥ इणि कारणि श्रुत आराधिये, निर्मल मुक्ति पंथ सा| धिये ॥ ५॥ श्रावश्यकावश्यकवितिरित्त, कालिक उतकालिक श्म वुत्त॥ अंग बाहिर ने अंगपविह, | | सूत्र उ नेद गणांगि दिछ ॥६॥ काल ग्रहण करि जणिये जेह, श्रागम नाख्यो कालिक तेह ॥ Pvasupvasanasvaraaaaam/Mom/ndeanIND
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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