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________________ आगम छत्रीशी ॥ ५० ॥ (१२) प्रमाण अंग अहम जाएं, यह वग्ग अध्ययन नेवु तसु विगत वखाणुं ॥ १०९ ॥ पहिले दस बीय वग्गि तेरह तह त्रीजे, दस चोथे दस पंचम ए बठे सोल गणीजे ॥ तेरह सत्तम म ए दस एह प्रमाण, अमंग अध्ययन तो जाणो न वियण जाण ॥ २० ॥ नव छाधिक सय (८०) ग्रंथ अनुत्तर उववाइ, नवम अंग (१०२) सत एक उपर बाणु कहाई ॥ त्रण वर्ग दस तेर दसय अध्ययन तेत्रीस, दसम अंग परिमाण कहेशुं मन आणी जगीश ॥ २१ ॥ ॥ ढाळ त्रिजी ॥ जमावसीनी देशी ॥ जिद व संवरनो विचार, तिह बोल्या दस अध्ययन सार ॥ बारहस्य साढा (१२५०) ग्रंथमान, पन्ढ्वागरणंग सुगुण प्रधान ॥ २२ ॥ दुख ने सुख नाना विभाग, जसु श्रवण टले संसार राग ॥ बारहसय सोल (१२२६) अध्ययन वीस, अगीयारमांगे मन जगीश ॥ २३ ॥ दवे कहियेबे बार जवंग, ते सुणो जवि मन धरी रंग ॥ उववाइय पनर सय (१५०० ) प्रमाण, तिद मयि वंदन गण ॥ २४ ॥ वली रायपसेणी सहस दुन्नि, मसत्तरी (२०१८) अधिका धरु आ०छ० ५० ॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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