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________________ सुदी दीपिका Nevanp/asmasauspeciaom/RE/APERDAMOM/amueva-sar कां छे:-पुणोवि वीयरागाणं, पडिमा चेइयालए: पत्तेयं संथुणे वंदे, एगग्गो भत्ति निम्मरं ॥१॥ वली प्रत्येक वीतराग देवनी पडिमानें तो विशेषे करी चैत्यालयने विषे स्तुति करे, वंदना करे, केवी रीते करे तो एकाग्र वली तन्मय थइ भक्तिपूर्वक वंदन करे, ए पण श्रावकना अधिकारे प्रतिमा वंदननो विधिवाद जाणवो, कदाग्रह निवारवो. श्री ज्ञाताधर्म कथाना सोळमा अध्ययनने विषे कडु के केःतएणं सादोवइ रायवरकन्ना जेणेव मज्जग घरे तेणेव उरागच्छइरत्ता मजण घरं अणुपविस्सहरचा ण्हायाकयकिकम्मा कय कोउय मंगल पायच्छित्ता मुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाईपवर परिहिया, मजग घराउपडिनिरुखमइरत्ता जेणेव जिगघरे देणेव उवागच्छइरत्ता जिणघरं अणुपविसतिरत्ता जिणपडिमाणं आलोएपणामं करेतिरत्ता वंदति नमसतिरत्ता लोमहत्वयं परामसति एवं जहा सूरियामे जिणपडिमाउ अच्वेड तहेव भाणियन्वं जाव धूभं डहइ वाजाणुं अंचेइ दाहिणजाणुं धरणि तलंसि निहट्ट तिख्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि नमेइरत्ता इसिं-पच्चुन्नमइ करयल-जाव कहुएवं वयासि नमोत्युगं अरिहंतागं जाव संपत्ताणं वंदइ नमसइ. अर्थ:-त्यारपछी ते द्रौपदी नामवाळी राजकन्या छे ते जे ठिकाणे मजनघर छे ते ठिकाणे आवे, आवीने मजनः । घर पटले नावाचें घर तेमां प्रवेश करे, प्रवेश करीने प्रथम नाही, पछी जेणीये बलिकर्म कर्या, तथा कौतुकमंगल कर्या के मननी शुदि माटे जेणीये, एहवी राजवन्या द्रौपदी, शुद्ध दोपरहित पूजनयोग्य, वळी मांगल्यकारी एहवा प्रधान वन पहेरी, Am/waaaaaaramasomastaveeDow/maavaa
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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