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अर्थः-श्रमण भगवान महावीरस्वामी अत्रेनान गुणसिलानाम यक्षना चैत्यने विषे समवसर्या छे, माटे हे देवाणुमिय | आपणे पण जइए. चालो श्रमण भगवान् महावीरपते वांदीए, नमस्कार करीए, यावत् पर्युपासना करीए, कारण के ते वंदनादि आ भव परभवमां हितभणी, सुखभणी, निरुपद्रवभणी, निःश्रेयसभणी, मोक्षभणी, अनुगामिपणामणी थशे. ते समयने विषे ते दर्दुरने (देडको) घणा मनुष्योनी पासे आ बाबत सांभलीने हैयामांधारीने मनमां एवो विचार उत्पन्न ययो के हुँ पण जाउं, श्रमण भगवान् महावीर प्रते वंदन करूं, नमस्कार करुं, एज मने जावत् कल्याणकारी हितभणी सुखभणी थशे. तेमज पूजा करवानुं पण आगममा कछु छे. ते नीचे मुजव:
॥श्री उबवाइ उपांगमांदि कडं . ।। ____ अंबडस्सणं णो कप्पति अन्न उत्थियावा अन्न उत्थिय देवयाणिवा अन्न उत्थिय परिगहियाइं अरिहंत चेइयाणिवा वंदित्तएवा णमंसित्तएवा पज्जुवासित्तएवा नण्णथ्य अरिहंतेवा अरिहंत चेइयाणिवा.
अर्थ:-अंबढनामा परिव्राजक कहे छे के, हे भगवन् आजथी मने अन्ययूथिक वा अन्यधिक देवो वा अन्ययूथिक परिग्रहित एटले पोताना देव करी मानेली अरिहंतनी प्रतिमाने वंदन, नमस्कार, पर्युपासनादिक करवा कल्पे नहि किंतु देवमां तो अरिहंत देव अने अरिहंत भगवान्ना बिंब (जिनपडिमा ) ते प्रत्ये वांदवा, पूजवा, पर्युपासना करवा कल्पे, एम श्रावकने अधिकारे वीतरागना उपदेशे जिनपतिमा बंदन पूजननो विधिवाद जाणवो. (तथा वली) श्री महानिशीथ मध्ये
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