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________________ रनो विचार थयो के मारे प्रथम शुं करवुं जोइये ने पछी भुं कर जोइये. वळी मारे प्रथम श्रेय (कल्याणकारी) शुं छे, अने पछी मारे श्रेय शुं (कल्याणकारी) छे, ने प्रथम पहेला तथा पछे कल्याणकारी मुंछे. बळी आत्माने हितभणी, सुखमणी, क्षेमभणी एटले पांगेल तेना रक्षण भणी वळी मोक्षमणी एटले सर्वथा दुःखथी मुक्त थवा भणी अने परंपराये हित करनार शुं हशे ? ज्यारे आवा विचार थया त्यारे ते सूर्याभदेवना सामानिक सभाना उत्पन्न थयेला देवो छे ते सूर्याभदेवना उपर कहेला मनोगत उपजेला विचार जाणीने जे ठिकाणे सूर्याभदेव छे ते स्थानमां आवे आवीने सूर्याभदेव प्रत्ये करसंपुट एकठा करी मस्तकमां आवर्तन करो अंजलि करी जय अने विजयवडे वधावे, वधावीने आ प्रमाणे बोल्या के - हे देवानुप्रिय आपलावना सूर्याभविमानने विषे सिद्धायतन छे तेमां १०८ जिन प्रतिमा छे, ते जिननी अवगाहना प्रमाणे उंचैमां छे, वळी सुधर्मा समाना माणवकचैत्यस्थंभमां वज्रमय गोळ आकारवाळा डाबडाओमां धणी जिनेश्वर भगवाननी डाढाओ रुडी रीते स्थापन करेली छे, ते जिनमतिमा अने डाढाओ आपसाहेबने तथा बीजा पण घणा विमानवासी देवता देवीयोने अर्चन करवा योग्य, वंदन करवा योग्य, नमस्कार करवा योग्य, पूजवा योग्य, सन्मान करवा योग्य, वळी कल्याणकारी, मंगलकारी लोकना अधिपतिपणाथी देवता तथा सुप्रशस्त मन करवानो हेतु होवाथी आपने पूजवा योग्य छे; माटे आप साहेबने प्रथम करवा योग्य एहज छे, पछी करवा योग्य पण एहज छे, ने वळी एहज पहेला श्रेय अने पाछल श्रेय ते एहज छे. आप साहेब ने पहेला भने पछे पण हितभणी, सुखभणी, क्षेमभणी, मोक्षभणी, अने परंपराये हितभणी थशे. ए रायपसेगी सूत्रनो पाठ गुरुगमथी अवधारवो.
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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