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श्रीउत्तरा
ध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः ।
॥३७१॥
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दसवाससहस्साई, काऊए ठिई जहन्निया होइ । तिन्नोदही पलियमसंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥ चतुस्त्रिंशं तिन्नदही पलियमसंखभागो जहन्न नीलठिई। दस उदही पलिओवममसंखभागं च उक्कोसा ॥४२॥ लेश्याख्यदस उदही पलिओवममसंखभागं जहनिया होइ । तित्तीससागराइं, उक्कोसा होइ किण्हाए ॥४३॥ मध्ययनम् । एसा नेरइयाणं, लेसाण ठिई उ वन्निया होइ । तेण परं वुच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं ॥४४॥
लेश्यानां अंतोमुहत्तमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ। तिरियाण नराणं वा, वजित्ता केवलं लेसं ॥४५॥
स्थितिमुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुबकोडी उ । नवहिं वरिसेहिं ऊणा, नायबा सुक्कलेसाए ॥४६॥
द्वारम् । एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वन्निया होइ । तेण परं वुच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं ॥४७॥ दसवाससहस्साई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियमसंखेजइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए॥४८॥ जा कण्हाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया। जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा। जा नीलाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उसमयमभहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा५०|| तेण परं वोच्छामि, तेऊलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणियाणं च ॥५१॥ पलिओवमं जहन्ना, उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया। पलियमसंखिजेणं, होइ सभागेण तेऊए ॥५२॥ दसवाससहस्साइं, तेऊए ठिई जहनिया होइ । दुण्णुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥५३॥ जा तेऊइ ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमभहिया। जहन्नेणं पम्हाए, दसमुहुत्तहियाई उक्कोसा५४ ॥३७१॥ जा पम्हाइ ठिई खलु, उक्कोसा सा उसमयमभहिया। जहन्नेणं सुक्काए, तित्तीसमुहुत्तमन्भहिया५५ व्याख्या-दशवर्षसहस्राणि कापोतायाः स्थितिर्जघन्यका भवति, त्रयः 'उद्धयः' सागरोपमाणीत्यर्थः “पलियम
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