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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिचन्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः । एकोनत्रिंशं सम्यक्त्वपराक्रमाख्यमध्ययनम्। त्रिसप्ततिपदानां फलनिरूपणम्। ॥३२९॥ भंते ! जीवे किं जणेइ ? वयसमाहारणयाए णं वयसाहारणं दसणपज्जवे विसोहेइ, वइसाहारणं दसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं च निवत्तेइ दुल्लहबोहियत्तं निजरेइ ॥१७॥ कायसमाधारणयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? कायसमाधारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसोहेइ, चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ, अहक्खायचरित्तं विसोहित्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाइ सबदुक्खाणमंतं करेइ ॥ ५८॥ नाणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? नाणसंपन्नयाए णं सबभावाभिगमं जणेइ, नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सई-"जहा सूई ससुत्ता, पडिया न विणस्सई। तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सई ॥१॥” नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयविसारए य असंघायणिज्जे भवइ ॥१९॥ दसणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणेइ ? दंसणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्तछेयणं करेइ परं न विज्झायइ, अणुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्म भावेमाणे विहरइ ॥ ६०॥ चरित्तसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणेइ ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसी भावं जणेइ, सेलेसिं पडिवन्ने अणगारे चत्तारि कम्मंसे खवेइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाइ सम्बदुक्खाणमंतं करेइ ॥६१॥ सोइंदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? सोइंदियनिग्गहेणं मणुण्णामणुन्नेसु सद्देसु रागद्दोसनिग्गरं जणेइ, तप्पच्चइयं च णं कम्म न बंधइ, पुत्ववद्धं च निजरेइ ॥६२॥ चक्खिदियनिग्गहेणं भंते ! जीवे किं जणेइ? ॥३२९॥
SR No.600327
Book TitleSukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangsuri, Nemichandrasuri
PublisherPushpchandra Kshemchandra
Publication Year1937
Total Pages798
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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