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कल्प ० वारसा०
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उदिए उदिए पूयासक्कारे भविस्सइ ॥ सू. १३१ ॥ जं स्यणिं च णं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्व - दुक्ख - प्पहीणे तं रयणिं च णं कुंथू अणुहरी नामं समुप्पन्ना, जा ठिआ अच लमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य नो चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जा अठिआ चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य चक्खुफासं हव्वमागच्छइ ॥ सू. १३२ ॥ जं पासित्ता बहूहिं निग्गंथेहिं निग्गंथीहि य भत्ताई पच्चक्खायाई, से किमाहु भंते ! ?, अज्जप्पभिई संजमे दुराराहे भविस्सइ ॥ सू. १३३ ॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स इंदभूइ - पामुक्खाओ चउदस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समण - संपया हुत्था ॥ सू. १३४ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स अज्जचंदणा - पामुक्खाओ छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया - संपया हुत्था ॥ सू. १३५ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स संख - सयग - पामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सी अउणट्टिं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था ॥ सू. १३६ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसा - रेवई -
महावीरचरि०
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