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कल्प० वारसा०
॥ २५ ॥
करिस्सामो वद्धमाणु ति ॥ सू. ९० ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे माउय - अणुकंपणट्टाए निचले निप्फंदे निरेयणे अल्लीण-पलीणगुत्ते यावि होत्था ॥ सू. ९१ ॥ तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेयारूवे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था -हडे मे से गब्भे ? मडे मे से गब्भे ? चुए मे से गभे ? गलिए मे से गब्भे ? एस मे गब्भे पुव्विं एयइ, इयाणिं नो एयइ ति कट्टु, ओहयमणसंकप्पा चिंतासोग - सागरं पविट्ठा, करयलपल्हत्थ - मुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगय - दिट्टिया झियाय, तं पिय सिद्धत्थ - रायवर - भवणं उवरयमुइंग - तंती-तलताल - नाडइज्ज - जणमणुज्जं दीणविमणं विहरइ ॥सू . ९२ ॥ तए णं से समणे भगवं महावीरे माऊए अयमेयारूवं अब्भत्थियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पन्नं वियाणित्ता एगदेसेणं एयइ, तर णं सा तिसला खत्तियाणी हट्टतुट्ठ जाव हिअया एवं वयासी ॥ सू. ९३ ॥ नो खलु मे गब्भे हडे, जाव नो गलिए, एस मे गब्भे पुव्वि नो एइ, इयाणिं एयइ त्ति कट्टु, हट्ट जाव एवं विहरइ, तए णं समणे भगवं महावीरे गव्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, “नो खलु मे कप्पइ अम्मापिऊहिं जीवं
महावीरचरि०
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