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महावीर
कल्प बारसा
॥२०॥
| कुलाभिरामे विचित्त-मणिरयण-कुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि, नाणा-मणिरयण-भत्ति- चार | चित्तंसि पहाणपीढंसि सुहनिसणे, पुप्फोदएहि अ, गंधोदएहि अ, उण्होदएहि अ, सुहोदएहि अ, है| सुद्धोदएहि अ, कल्लाण-करण-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए । तत्थ कोउअसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे, पम्हलसुकुमाल-गंधकाइअ-लूहिअंगे, अहय-सुमहग्घ-दूसर
यण-सुसंवुडे, सरस-सुरभि-गोसीस-चंदणाणुलित्त-गत्ते, सुइ-मालावण्णग-विलेवणे, आवि। द्ध-मणिसुवण्णे, कप्पिय-हारद्वहार-तिसरय-पालंब पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोभे, पिणद्ध| गेविज्जे, अंगुलिज्जग-ललिय–कयाभरणे, वरकडग-तुडिय-थंभियभुए, अहियरूव-सस्सिरीए, | कुंडल-उज्जोइ-आणणे, मउड-दित्तसिरए, हारोत्थय-सुकय-रइय-वच्छे, मुद्दिया-पिंगलं-गुली| ए, पालंब–पलंबमाण-सुकय-पडउत्तरिज्जे, नाणा-मणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउ| णोवचिय-मिसिमिसिंत-विरइय-सुसिलिट्ठ-विसिद्ध-लट्ठ-आविद्ध-वीरवलए, किं बहुणा ? | कप्परुक्खए विव अलंकिय-विभूसिए नरिंदे, सकोरिंट-मल्लदामणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवर || ॥२०॥
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