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कल्प ० बारसा०
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धियं गंधवट्टि - भूयं करेह, कारवेह, करिता कारवित्ता य सिंहासणं रयावेह, रयावित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चाप्पिणह ॥ सू. ५८॥ तए णं ते कोडुंबिय - पुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्ट - तुट्ठ जाव हियया करयल जाव कट्टु एवं सामि त्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवद्वाणसालं गंधोदय - सित्तं जाव सीहासणं रयाविंति रयावित्ता जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल - परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु सिद्धत्थस्स खत्तियस्स तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ॥ सू. ५९ ॥ तए णं सिद्धत्थे खत्तिए कलं पाउप्पभाए रयणी फुल्लुप्पल कमल - कोमलुम्मीलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगासकिंसुय - सुयमुह - गुंजद्धराग- बंधुजीवग - पारावय- चलणनयण- - परहुअ - सुरत्तलोअण-जासुअण कुसुमरासि - हिंगुलय-निअरातिरेय-रेहंत - सरिसे कमलायर - संडबोहए उठ्ठियंमि सूरे सहस्स
महावीर - चरि०
॥ १९॥