________________
कल्पवारसा
सामाचारी
॥७५॥
| छन्नाणि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवज्जइ ॥सू . २९॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणग-फुसिय-मित्तंपि निवडइ, नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ सू. ३० ॥ वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गह-धारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्घारिय-बुट्ठिकार्यसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्प-बुट्टिकायंसि संतरुत्त- |
रंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ सू. ३१॥ (ग्रं० ४११००) वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडिआए | अणु-पविठुस्स निगिज्झिय निगिन्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्ख-मूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥सू. ३२॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगा
SHASKARBASIBISHRSHASHRASEARS
॥७५॥