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विशेषाव० कोट्याचार्य वृत्ती
नमस्कार पूजाभ्यां फलसिद्धिः
॥९०७॥
॥९०७॥
तं पुण्णं पावं वा ठियमत्तणि बज्झपच्चयावेक्खं । कालंतरपागाओ देइ फलं न परओ लम्भं ॥३९८१॥ जइ वा पडिलहियव्वं तत्तोचिय जेण तं परिग्गहियं । तो तम्मि सिवं पत्ते कुगइगए वा कुओ लब्भ?॥३९८२॥ लहइ अदेतो व कओ साहू ज देज पुवदाइस्स। कत्तोऽवहारिणो तंज पडिहीरेज से धणिणो ?॥३९८३।। अहव मई जं तेणवि दिण्णं अण्णस्स तं तओ लद्धं । पडिदेह तहा हारी हारीओ अण्णओ लद्धं ॥३९८४।। एवं होउऽणवत्था दाणग्गहणाणमपरिभोगो य । जइ परओलद्धव्वं देयं वा तस्स तं चेव ॥३९८५॥ तम्हा सपराणुग्गहपरिणामाओ सुपत्तविणिओगा। दाया पुण्णं पावइ जं तत्तो से फलं होइ ॥३९८६॥ जह सो पत्ताणुग्गहपरिणामाओ फलं सओ लहइ । तह गेण्हंतोऽवि फलं तदणुग्गहओ सोलहइ ॥३९८७॥ हारीवि हरणपरिणामदूसिओ बज्झपच्चयाविक्खं । पावो पावं पावइ जं तत्तो से फलं होइ ।।३९८८॥ जह सायत्तं दाणे परिणामाओ फलं तहेहावि । निययपरिणामउचिय सिद्ध जिणसिद्धपूयाए ॥३९८९।। कजा जिणाइपूया परिणामविसुद्धिहेउओ निच्च । दाणादउ व्व मग्गप्पभावणाओ य कहणं व ॥३९९०॥ कोवप्पसायरहियपि दीसए फलदमण्णपाणाई। कोवप्पसायरहियंति निष्फलं तो अणेगंतो ॥३९९१।। कोवाइविरहियं चिय सव्वं जमणुग्गहोवघायाय । दीसइ तेण विरुद्धं फलमिह कोवप्पसायाओ ॥३९९२॥ हरणप्पयाणहेऊ हवेज़ कोवादओ मई तंपि । नणु सकयं चिय भणियं निभित्तमेत्तं परोनवरं ।।३९९३।। जइ वा न सकयं हेउं तं तो कोवप्पसायवं राया। सो सव्यसेवयाणं समाणफलदो कहं न भवे ॥३९९४॥
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