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________________ विशेषाव कोव्याचार्य वृत्ती आद्यगणधरः // 475 // // 475 // RAHARASSSS पढमेत्य इंदभूई वितिए पुण होति अग्गिभूइत्ति / ततिए य वाउभूती ततो वियत्ते सुधम्मो य // 2012 // मंडिय मोरियपुत्ते अकंपिए चेव अयलभाया य / मेयज्जे य पभासे गणहरा होंति वीरस्स // 2013 // जं कारणनिक्खमणं वोच्छ एएसि आणुपुवीए / तित्थं च सुहम्माओ निरवच्चा गणहरा सेसा॥२०१४॥ जीवे कम्मे तज्जीव भूय तारिसय बन्धमोक्खे य / देवा णेरइए या पुण्णे परलोय णिव्वाणे // 2015 // पंचण्हं पंचसया अधुट्ठसया य होन्ति दोण्ह गणा।दोण्हं तु जुवलयाणं तिसओ तिसतो हवइ गच्छो॥२०१६|| भवणवइवाणमंतर जोइसवासी विमाणवासीय / सविडीऍ सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ।नि.१४७। दठ्ठण कीरमाणी महिमं देवेहिं जिणवरिंदस्स। अह एइ अहंमाणी अमरिसिओ इन्दभूइत्ति।नि.१४८॥ | मोत्तूण ममं लोगो किं वचइ एस तस्स पासाइं / अन्नोऽवि जाणइ मए ठियमि कत्तोचयं एयं // 2019 // धावेज व मुक्खजणो देवा कहऽणेण विम्हयं नीया / वंदंति संथुणंति य जेणं सवण्णुबुद्धीए॥२०२०॥ अहवा जारिसओ सो णाणी तारिसया सुरा तेऽवि / अणुसरिसो संजोगो गामणडाणं व मुक्खाणं // 2021 // काउं हयप्पयावं पुरतो देवाण दाणवाणं च / (वाएण विविहत्थाण लहु जाणावेमि मं गंतुं)॥२०२२॥ इय (वोत्तूर्ण पत्तोदट्टण तिलोयपरिवुडं वीरं)। (चउतीसतिसयपत्तं स संकिओविय ठिो पुरओ)॥२०२३॥ 'भवणवइवाणमंतरे'त्यादि कण्ठया / अत्रान्तरे कथनिचतो यज्ञपाटामिर्गतत्वात्, किमत आह-'दट्ठूणे'त्यादि, 'दृष्ट्वा' OLKAR
SR No.600320
Book TitleVisheshavashyak Bhashyam Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinbhadra Gani Kshamashraman
PublisherRushabhdev Keshrimal Shwetambar Samstha
Publication Year1937
Total Pages504
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size40 MB
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