________________ विशेषाव कोट्याचार्य श्रीवीरविभुभव: // 465 // // 465 // ROLAGUARAN अह तं अम्मापियरो जाणित्ता अहियअट्ठवासं तु / कयकोउयलंकारं लेहायरियस्स उवणेति // 1871 // सको य तस्समक्खं भगवंतऽस्सासणे निवेसित्ता। सहस्स लक्खणं पुच्छे वागरणा (अवयवा इंद)॥१८७२॥ उम्मुकवाल (भावो) कमेण अइजोवण्णं अणुप्पत्तो। (भोगसमत्थं णाउं अम्मापियरो उ वीरस्स)॥१८७३॥ तिहिरिक्वमि पसत्थे महंतसामंतकुलप्पसूयाए। कारेंति पाणिगहणं जसोयवरराजकन्नाए // 1874 // पंचविहे माणुस्से भोगे भुंजिनु सह जसोयाए / तेयसिरिं व सुरूवं जणयह पियदसणं धूयं // 1875 // हत्युत्तरजोएणं कुण्डग्गामम्मि खत्तिओ जच्चो / बजरिसहसंघयणो भविअजणविबोहओ वीरो॥१८७६।। सो देवपरिग्गहितो तीसं वासाई वसति गिहिवासे / अम्माईहिं भगवं देवत्तगएहिं पव्यइओ // 1877 // संवच्छरेण होहिइ अभिनिक्खमणं तु जिणवरिन्दाणं / तो अत्थसंपयाणं पवत्तई पुव्वसूरम्मि॥१८७८॥ एगा हिरण्णकोडी अद्वेव अणूणगा सयसहस्सा / सूरोदयमाईयं दिवइ जा पायरासाउ // 1879 // सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरचउम्मुहमहापहपहेसु / दारेसु पुरवराणं रत्थासु य मझयारेसु॥१८॥ (वरवरिया घो)सिज्जइ किमिच्छयं दिजए बहुविहीयं / असुरसुरदेवदाणवनरिंदमहियाण निक्खमणे॥१८८१॥ (तिण्णेव य कोडि)सया अट्ठासीतिं च होंति कोडीउ / असिहं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिण्णं // 1882 / / निक्खमणकयमतीयं कुण्डग्गामम्मि खत्तियं वीरं / हत्थुत्तरजोएणं (लोगंतिय आगया ए)ए // 1883 // (सार)स्सयमा(इच्चा वण्ही वरुणा य गहतो) या य।(तुसिया अव्वाबाहा) अग्गिचा चेव रिहा य॥१८८४॥